Friday, 15 November 2013

Bacha School Na Jae To Hum Maarte Hyn
Masjid Na Jae To Koi Baat Nahi.?
Agar Hum
Non-Muslim Ki Tarah Kapde Pehnen To High Standard
Agar Musalman Ki Tarah Pehnen To Low Level.?
EngLish Seekhne Na Jaen To Maarte Hai
QURAAN PAK Na Seekhen To Koi Baat Nahi.?
A For Apple Sikhaya
A For ALLAH Nahi Sikhaya.?
B For Baat Sikhai
B For Bismillah Na Sikhai.?
Indian Actor Ki Naqal Karen To Khushi Hoti Hai
Aap (Sallallahu Alaihi Wa Sallam) Ki Sunnat Pe Amal Karen To Mazaaq Udaate Hain.?Frwrd Mat Karna, Aankhen Band Kar K Delete Kar Do,
Kyun K Aisa Karne Se Log Mazaq Udain Ge."
Zara Ghour To Kijiye Hum Kis Jahan Ki Tayyari Kar Rahe Hai..?



Hazrat Abu Hurairah (RaziALLAHU Anhu) se riwayat hai ki RasulALLAH (Sal’lal’lahu Alaihe 
Wasallam) ne irshaad farmaya :
Jo Shakhs har namaaz k baad
“SUBHAN’ALLAH” 33 martaba.“ALHUMDULILLAH” 33 martaba,ALLAHU AKBAR 33 martaba parhe,
Ye kul 99 martaba hua aur SO (100) ki ginti puri karte huye
1 martaba “LA ILAHA IL LAL LAHU WAHDAHU LA SHARIKA LAHU LAHULMULKU WA LAHUL HUMDU WA HO WA ALA KULLE SHEYIN QADEER”
parhe uske gunaah maaf ho jate hain, Agarche samandar k jhaag k barabar hon.
(Muslim : 1352)
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मुहर्रम : कैसे हुई ताजियों की शुरुआत
ताजियों की परंपरा.....
मुहर्रम कोई त्योहार नहीं है, यह सिर्फ इस्लामी हिजरी सन्‌ का पहला महीना है। पूरी इस्लामी दुनिया में मुहर्रम की नौ और दस तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है। क्यूंकि ये तारिख इस्लामी इतिहास कि बहुत खास तारिख है.....रहा सवाल भारत में ताजियादारी का तो यह एक शुद्ध भारतीय परंपरा है, जिसका इस्लाम से कोई ताल्लुक़ नहीं है।
इसकी शुरुआत बरसों पहले तैमूर लंग बादशाह ने की थी, जिसका ताल्लुक ‍शीआ संप्रदाय से था। तब से भारत के शीआ-सुन्नी और कुछ क्षेत्रों में हिन्दू भी ताजियों (इमाम हुसैन की कब्र की प्रतिकृति, जो इराक के कर्बला नामक स्थान पर है) की परंपरा को मानते या मनाते आ रहे हैं। 
भारत में ताजिए के इतिहास और बादशाह तैमूर लंग का गहरा रिश्ता है। तैमूर बरला वंश का तुर्की योद्धा था और विश्व विजय उसका सपना था। सन्‌ 1336 को समरकंद के नजदीक केश गांव ट्रांस ऑक्सानिया (अब उज्बेकिस्तान) में जन्मे तैमूर को चंगेज खां के पुत्र चुगताई ने प्रशिक्षण दिया। सिर्फ 13 वर्ष की उम्र में ही वह चुगताई तुर्कों का सरदार बन गया।
फारस, अफगानिस्तान, मेसोपोटामिया और रूस के कुछ भागों को जीतते हुए तैमूर भारत (1398) पहुंचा। उसके साथ 98000 सैनिक भी भारत आए। दिल्ली में मेहमूद तुगलक से युद्ध कर अपना ठिकाना बनाया और यहीं उसने स्वयं को सम्राट घोषित किया। तैमूर लंग तुर्की शब्द है, जिसका अर्थ तैमूर लंगड़ा होता है। वह दाएं हाथ और दाए पांव से पंगु था। 
तैमूर लंग शीआ संप्रदाय से था और मुहर्रम माह में हर साल इराक जरूर जाता था, लेकिन बीमारी के कारण एक साल नहीं जा पाया। वह हृदय रोगी था, इसलिए हकीमों, वैद्यों ने उसे सफर के लिए मना किया था। 
बादशाह सलामत को खुश करने के लिए दरबारियों ने ऐसा करना चाहा, जिससे तैमूर खुश हो जाए। उस जमाने के कलाकारों को इकट्ठा कर उन्हें इराक के कर्बला में बने इमाम हुसैन के रोजे (कब्र) की प्रतिकृति बनाने का आदेश दिया। 
कुछ कलाकारों ने बांस की किमचियों की मदद से 'कब्र' या इमाम हुसैन की यादगार का ढांचा तैयार किया। इसे तरह-तरह के फूलों से सजाया गया। इसी को ताजिया नाम दिया गया। इस ताजिए को पहली बार 801 हिजरी में तैमूर लंग के महल परिसर में रखा गया। 
तैमूर के ताजिए की धूम बहुत जल्द पूरे देश में मच गई। देशभर से राजे-रजवाड़े और श्रद्धालु जनता इन ताजियों की जियारत (दर्शन) के लिए पहुंचने लगे। तैमूर लंग को खुश करने के लिए देश की अन्य रियासतों में भी इस परंपरा की सख्ती के साथ शुरुआत हो गई।
खासतौर पर दिल्ली के आसपास के जो शीआ संप्रदाय के नवाब थे, उन्होंने तुरंत इस परंपरा पर अमल शुरू कर दिया तब से लेकर आज तक इस अनूठी परंपरा को भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और बर्मा (म्यांमार) में मनाया जा रहा है।
जबकि खुद तैमूर लंग के देश उज्बेकिस्तान या कजाकिस्तान में या शीआ बहुल देश ईरान में ताजियों की परंपरा का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। 
68 वर्षीय तैमूर अपनी शुरू की गई ताजियों की परंपरा को ज्यादा देख नहीं पाया और गंभीर बीमारी में मुब्तिला होने के कारण 1404 में समरकंद लौट गया। बीमारी के बावजूद उसने चीन अभियान की तैयारियां शुरू कीं, लेकिन 19 फरवरी 1405 को ओटरार चिमकेंट के पास (अब शिमकेंट, कजाकिस्तान) में तैमूर का इंतकाल (निधन) हो गया। लेकिन तैमूर के जाने के बाद भी भारत में यह परंपरा जारी रही। 
तुगलक-तैमूर वंश के बाद मुगलों ने भी इस परंपरा को जारी रखा। मुगल बादशाह हुमायूं ने सन्‌ नौ हिजरी 962 में बैरम खां से 46 तौला के जमुर्रद (पन्ना/ हरित मणि) का बना ताजिया मंगवाया था।
कुल मिलकर ताज़िया का इस्लाम से कोई ताल्लुक़ ही नही है....लेकिन हमारे भाई बेहेन जो न इल्म है और इस काम को सवाब समझ कर करते है उन्हें हक़ीक़त बताना भी हमारा ही काम है.......

Thursday, 14 November 2013






assalamu alaikum
muaziz bhai aur piyare dosto
hume allah tabarak watala ka shukar ada karna chahiye ke usne hume musalman paida kiya
aur usse bhi ziyada is baat par shukar ada karna chahiye ke usne hume hazrate mohammed mustafa salallahi alaihi wasallam ki umat me paida kiya

ye duniya humare liye bus ek qaid khana hai aur hum is duniya ke qaidi
phirbhi hum is baat ko bhol jate hai ke hume duniya me kis maqsad se bheja gaya kis liye bheja gaya kyun bheja gaya
allah ne hume sirf aur sirf apne ibadat ke liye bheja hai
aur ye duniya banane ka maqsad hi isiliye hai ke hum apne parwardigar par kamil iman rakhe
waqt kisi ke liye nahi rukta
jab adam alaihi wasalaam ko unki galti par duniya me behja gaya to aap alaihi wasalaam ne kayi bar allah se maafi mangi ye silsila chalta raha aur ek din allah ne aap alaihi wasalaam ko maaf farmaya
aur unse pucha ke aye adam tumhe kaise pata chala ke mohammed mera nabi aur mera aziz hai
to aap alaihi wasalaam ne farmaya ke aye allah jab tu mujh me roh phonk raha tha to mai ne tere arsh par la ilaaha illallah mohammadur rasul lullah dekha mujhe yakeen huwa ke mohammed tera sabse ziyada mehboob hai
dosto mujhe is baat par afsoos hota hai ke hum unki umat me se hokar is tarha bhatke hai ke hum sirf naam ke musalman hokar rehgaye hai
humne jane anjane kitni namaze tark ki

bakya agli bar inshallah